Monday 18 April 2016

मित्र वही जो मुसीबत में काम आए

कुछ रिश्ते कभी भी शब्दों मे नहीं बाँधे जा सकते उन्हीं मे से एक है मित्रता , हम हर रिश्ते से मित्रता को जोड़ सकते है और जैसे ही मित्रता उस अमूक रिश्ते से जुडती है वह रिश्ता और भी मज़बूत हो जाता है ,और सबसे बड़ी बात यह कि हम हर परिचित व्यक्ति को एक साधारण शब्द मित्र से संबोधित कर सकते है , ईश्वर ने हमे नातेदारी जन्म से दी है लेकिन मित्रों का चयन हमारे विवेक पर छोडा है और सही मायनों मे यह ही मनुष्य की सबसे बड़ी स्वतंत्रता है ।
लेकिन यह भी याद रखे कि मित्रता ही व्यक्ति को सर्वाधिक नुकसान पहुँचाती है , तो ऐसे परिचितो की पहचान करे और मित्रता को बदनाम होने से बचाए क्योंकि वास्तविकता यही है कि हर परिचित मित्र नही होता , और मित्र वहीं है जो मुसीबत मे काम आए ।

दहेज के side effect

जैसे -जैसे सूर्य की तपिश बढ़ती जाएगी वैसे-वैसे भारतीय समाज पर शादी का निराला रंग चढता जाएगा , और लोग अनावश्यक खर्चों से खुशी तलाशने मे जुट जाएँगे। ऐसे ही अनावश्यक खर्च एवं महा सामाजिक कुरीति का श्रेष्ठ उदाहरण है दहेज।
दहेज प्रथा की मूल वजह को तलाशा जाए तो पाएँगे एक अदृश्य सामाजिक दबाव जिसमें लोग अपनी झूठी शान को दिखाने के लिए बेहिसाब धन का नुकसान  करते है, कई बार देखने मे आता है कि वर पक्ष की तरफ कोई माँग न होने के बावजूद लोग उन्हें दहेज देते है जिसे वे सभ्य समाज मे उपहार कहते है । आर्थिक रूप से मज़बूत परिवार तो इस खर्च को सह लेते है लेकिन वास्तविक दवाब गरीबों पर आता है जिसे समाज मे आपनी अस्मिता बचाए रखने के लिए उधार लेकर भी अपनी विवाह को संपन्न करना होता है ।
यहीं से भेदभाव और प्रबल होता है और लोग कन्या भ्रूण हत्या जैसे अपराध करते है ,सामाजिक विषमता उत्पन्न होती है दहेज मृत्यु होने लगती है दहेज प्रथा का एक और नुकसान स्त्रियों को होता है जिससे वे अपने आर्थिक आधार से विमुख होतीं है और अपने परिवार से अपनी संपत्ति को नहीं माँग पाती जो कि उनका वैधानिक हक होता है ।
वैसे इस कुरीति से लडने की बात हर कोई करता है लेकिन व्यक्तिगत स्वार्थ के आगे हार जाते है क्योंकि आती हुई लक्ष्मी किसे बुरी लगती है , कुछ लोग इस प्रथा को सही साबित करने के लिए वेद, पुराण और इतिहास का सहारा लेते है लेकिन वास्तव मे सब मिथ्या साक्ष्य है ।
इस सभ्य समाज से हटकर अगर हम आदिवासियों के जीवन पर नजर डालें तो पाएँगे कि न तो उनके यहाँ माता पिता अपने बच्चों का बिना मर्जी का विवाह कराते है और न ही दहेज जैसी कुरीति होती है ,,,,,, तो विचार करें सभ्य कौन?

' अंग्रेज चले गए अंग्रेजी छोड़ गए हिन्दी की टांगे तोड गए'

आने वाले वर्षों मे इस बात की प्रबल संभावना है कि हिन्दी को यू .एन की भाषा बना दिया जाएगा और सरकार हर साल लगभग सौ करोड़ ₹ इस पर खर्च भी करेगी , माननीय प्रधानमंत्री जी जब लाल किले की प्राचीर से अपना भावनाओ से ओतप्रोत भाषण हिन्दी मे देते है तो हमे अपनेपन का बोध होता है । और एक कदम आगे बढ़कर जब महोदय ने अंतराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी को तहरीज दी और सरकार की नीतियों एवं उपलब्धियो को लोगों तक पहुँचाने के लिए हिन्दी मे वेबसाइट को चालू किया तो हमारा सीना फूलकर 56 इंच का हो गया , लगा मानो हिन्दी के दिन फिर गए ।
लेकिन अफसोस की बात यह है कि आज हिन्दी अपने ही देश मे पराई है । भाषा का मुख्य मकसद भावनाओं का आदान- प्रदान है लेकिन हमारे देश मे यह बौद्धिकता का भी मापदंड है ,अगर आप रेल्वे के स्लिपर क्लास मे है तो हिन्दी बोल सकते है लेकिन अगर वातानुकूलित डिब्बे मे है तो हिन्दी बोलने पर आपको संदिग्ध निगाहों का सामना करना पडेगा । अचरज तो उस समय होता है जब किसी मल्टीप्लेक्स या फूड चेन रेस्तराँ मे जाने पर अंग्रेजी के कुछ चुनिंदा शब्दों को जानने वाला वेटर आपके द्वारा हिन्दी मे आर्डर दिये जाने पर आपको तिरस्कृत नजरों से देखता है । और हिन्दी माध्यम स्कूलों का तो भगवान ही मालिक है ।
आज लगता है लार्ड मेकाले अपनी उस नीति मे पूर्णतः सफल दिखाई देते है जिसमें उन्होंने काले अंग्रेजो की एक ऐसी फौज बना ली है जो दिखने मे तो भारतीय है लेकिन विचारों से अंग्रेज ।
अंततः हिन्दी , हिंदू , हिन्दुस्तान को आदर्श मानने वाली यह सरकार शायद हिन्दी के उद्धार मे कुछ न कर सके लेकिन कम से कम उसे इतना एहसान तो करना ही चाहिए कि सारे स्कूलों से हिन्दी माध्यम को समाप्त कर अंग्रेजी माध्यम को लाए जिससे प्रतिमाओ को और लज्जित न होना पड़े।

अफ़सोस

कभी -कभी कुछ घटनाएँ इतने विपरीत समय मे घटित होती है कि उनका अफसोस मनाने तक का समय इंसान के पास नहीं होता , वो हर रात जलता है कुढता है और अपने गम को अपने जीवन का अभिन्न अंग मान बैठता है उसके लिए हर रात इतनी काली और उदासीन होती है कि वह हर पल सुबह होने का इंतज़ार करता है ।
उस असहाय व्यक्ति की पीढा का आलम यह होता है कि वह खुद से ही विद्रोह कर बैठता है, अशांत मन उसे जीने नहीं देता । कहते है कि वक्त हर ज़ख्म को भुला देता है लेकिन ऐसे ज़ख्म वक्त के साथ नासूर मे तब्दील हो जाते है ।और ये नासूर पूरी उम्र दुख रूपी मवाद के रूप रिसते रहते है ।

Sunday 17 April 2016

आधुनिक Love

दोनों का मिलना बिलकुल सहज था , कई दिनों तक दोनों एक दूसरे पर नज़र रखे हुए थे और अपने मन की बात एक दूसरे से कहना चाहते थे , आखिर वह दिन भी आया जब इश्क का इज़हार हुआ । आने वाले कई दिनो तक दोनों ने एक- दूसरे को जानने के लिए कई राते फोन पर बिताई, दोनों के मित्रों को इस बात से पीढा पहुँची कि अमुक व्यक्ति हमारे लिए समय नहीं निकाल रहा है ।
एक दिन दोनों रेस्तराँ में डिनर के लिए पहुँचे मिलन के नशे मे चूर दोनों की ऑखो से प्रेम झलक रहा था खाना तो मात्र बहाना था दरअसल दोनों सिर्फ एक दूसरे का साथ चाहते थे । तभी लड़के ने उनके भविष्य को लेकर कुछ गंभीर प्रशन उठाएँ , हम शादी कब करेंगे ? लड़की मौन रही गहरी साँस लेकर बोली -  मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ लेकिन मैं शादी अपने माता पिता की मर्जी से ही करूँगी ।लड़का शांत भाव से उसे निहारता रहा फिर एका एक बोला ठीक है तुम्हारी जैसी मर्जी , लड़के ने अपने अभिनय का बेहतरीन प्रदर्शन किया वह इस बात को अपनी चेहरे की गंभीरता से छिपने मे कामयाब हुआ कि वह भी यहीं चाहता था ।
आखिरकार दोनों के सब्र का बांध टूट गया और सारी मर्यादा को भूलकर दोनों एक हो गए, उन्होंने कई राते एक साथ गुजारी और कुछ दिनों बाद एक साथ ही रहने लगे , शुरुआत मे दोनों को लगा कि उनका फैसला सही था लेकिन उनमें वहीं समस्या पैदा होने लगी जो आम दंपति मे होती है बस फर्क यह था कि इस छिपे रिश्ते को सामाजिक मान्यता नहीं थी ।
कुछ समय बाद दोनों का मोह एक दूसरे से भंग होने लगा और उन्होंने फैसला किया कि वे दोनों इस रिश्ते से अलग भी संबंध स्थापित करेंगे , दोनों ने अपने -अपने लिए नए साथी तलाश लिए, कभी -कभी तो वे साथ मे डिनर पर भी गए ।आखिर वह समय भी आ गया जब दोनों की पढाई खत्म हो गई और दोनों अपने अपने घर लौट गए । समय के साथ उनका प्रेम मित्रता मे बदल गया और दोनों अपने अपने जीवन मे व्यस्त हो गए ।दोनों की शादी का समय नज़दीक आ गया और वे लगभग अपने भावी हमसफरो से असंतुष्ट रहे , पर ना जाने वह कौन सी बात थी जो उन्हें एक दूसरे से जोडे रखी थी वे अपने -अपने साथियों की तुलना एक दूसरे से करते और अंततः एक दूसरे को ही अपने लिए बेहतर सिद्ध करते ।
कई दिनों तक एक दूसरे को शिद्दत से याद करने के बाद अंततः दोनों ने पारिवारिक मर्जी के इतर शादी कर ली , शायद वे खुश भी हो लेकिन कुछ गलतियाँ उन्हें हमेशा दुख देंगी क्योंकि आज भी लोग कितने ही आधुनिक क्यों ना हो जाए अपने साथी को किसी और के साथ बर्दाश्त नहीं कर पाते ।

Friday 26 February 2016

HANGING IN BETWEEN SOCIAL AND HUMAN


Hanging in between social and human
Why we have to embrace only one?
I am the segment of society
Yet I don’t get liberty
People have storms building in
For the contentment I am achieving
Why can’t they be a part of merry making?
Why are they freaking and fretting?
Hanging in between social and human
Why we have to embrace only one?
If I opt for being human
Community can’t let it happen
If I try to be social
My psyche doesn’t give me approval
Feeling suffocated why I am a human?
Or should I say why I am an Indian woman?
Hanging in between social and human
Why we have to embrace only one?
I am the helpless fish
Have to capitulate to your wish
I am the epitome of sacrifice
Lord please plant the seeds of peace
I have to hoodwink my conscience
To dwell on the social lines

Thursday 25 February 2016

Matched though Unmatched………………(A love story)




A dog and a cat, crossed each other’s path,
They fall for each other in the very start,
Dog started to woo his new sweetheart,
That was the effect of blind cupid’s dart,
“O! How similar we are” exclaimed the Dog
“With four legs to run and fur full of spots”
We are just like each other , they dreamt every day,
Cat musing around, O! How he loves my sound
They both licked milk from the same tray,
And chased little mouse on their dream date,
When superiors put caution to their climb,
They pledged for love, saying that’s not a crime,
At last after revolution they joined their hands,
Others waiting for the outcome of their stand,
For sometime new marriage was full of bloom,
But as time passed life turned to gloom,
Where they found similarity now difference arise,
And none of them was ready for compromise,
Dog brought bone for special supper,
Cat rejected by saying why she should suffer?
Cat irritated by bark of dog,
Dog barking hard in midnight fog,
Many were issues they tried to resolve,
But now they stand for relation to dissolve,
Know truly before you commit to someone,
Don’t make blind fall compel your reason………….